माँ तुम्हारा वो एहसास
तुम मेरी माँ हो,
मै ये जानता हूँ ;
पहचानता हूँ ..
तुमने
मेरा हाथ थाम
चलना सिखलाया था। .
मेरे कदम
जब डगमगाए थे;
तुमने
हाथ बढ़ा थामा था।
जब भी कभी
मै गिरा
तुमने
मुझे उठा
मेरी सिर
प्यार से सहलाया था।
आज
जब तुमने
अपना हाथ
मुझे थमाया था,
तुम्हारा वही
कोमल एहसास
मुझे सहला गया था।
मुझे मालूम है :
आज मुझे
तुम्हारा हाथ थामना है;
और
मुझे भी तुम्हारे
उसी एहसास को
फिर से
एक बार
जीना है।
तुमने जो मुझे दिया;
आज मुझे,
मेरी प्यारी माँ ...!
तुमको वो लौटना है।
और ...और ...
तुम्हारी
वही ममता और स्नेह का
अमर वरदान
मुझे फिर से जीना
और पाना है।
वीणा सेठी ..................................................................................................................................................
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जन्मदात्री है वो मात्र इंसान नहीं है
जवाब देंहटाएंव्यक्तित्व बनाती है, केवल पहचान नहीं है,बहुत ही सुन्दर रचना.
आमीन ... माँ तो हमेशा साथ होती है दृश्य या अदृश्य ..
जवाब देंहटाएंनमन है माँ को ..